दोस्तो आज हम अपने इस पोस्ट में राजा राम मोहन राय (Raja Ram Mohan Roy) के बारेंं में महत्वपूर्ण जानकारी देंगे राजा राममोहन राय (Raja Ram Mohan Roy) को भारतीय समाज में पुनर्जागरण का अग्रदूत और आधुनिक भारत का जनक कहा जाता है तो आइये दोस्तो जानते हैै श्री राजा राम मोहन राय के बारे में (Know About Raja Ram Mohan Roy in Hindi) महत्वपूर्ण तथ्य -
जानें राजा राममोहन राय के बारे में - Know About Raja Ram Mohan Roy in Hindi
- राजा राममोहन राय (Raja Ram Mohan Roy) का जन्म बंगाल के राधा नगर ग्राम में 22 मई वर्ष 1772 में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था
- राजा राममोहन राय के पिता रमाकान्त राय (Ramakant Roy) एक वैष्णव एवं माता का नाम तारिणी देवी (Tarini Devi) था
- राजा राममोहन राय को 15 वर्ष की उम्र में बंंगाली , फारसी, अरबी, संस्कृत, हिन्दी, अंग्रेजी, ग्रीक, फ्रैन्च, लेटिन आदि भाषाओं का अच्छा ज्ञान था
- राजा राममोहन राय ने वर्ष 1802 में एकेश्वरवाद के समर्थन में फारसी भाषा में “टुफरवुल मुवादिन” नामक पुस्तक की रचना की यह पुस्तक उन्होंने अरबी भाषा में लिखी
- राजा राममोहन राय ने वर्ष 1816 में उनकी एक और पुस्तक “वेदान्त सार” का प्रकाशन कियाा गया जिसके कारण उन्होंने ईश्वरवाद और कर्म-काण्ड की आलोचना सहन करनी पडी
- राजा राममोहन राय ने अपने जीवन में तीन शादियाँ की, इनकी पहली शादि बहुत ही कम उम्र में हुई जो बहुत ही कम समय में इनका साथ छोड़ कर चली गई
- इसके बाद इन्होने दूसरी शादी की वो भी इनका साथ लम्बे समय तक नहीं निभा सकी, इन दोनों के दो पुत्र राधाप्रसाद और रामप्रसाद थे तथा इनकी तीसरी शादी उमा देवी से हुयी इन्होने इनका साथ उम्र भर दिया
- राजा राममोहन राय (Raja Ram Mohan Roy) ने तिब्बत जाकर बौद्ध धर्म का अध्ययन किया लौटने के बाद इन्होने ईस्ट इंडिया कंपनी में क्लर्क के पद पर नौकरी कर ली नौकरी के समय इन्हे अंग्रेजी, लैटिन और ग्रीक भाषाओ का ज्ञान प्राप्त किया
- राजा राममोहन राय ने सती-प्रथा, अन्धविश्वासो, बहु-विवाह और जाति प्रथा का विरोध किया
- राजा राममोहन राय ने वर्ष 1814 में ‘आत्मीय सभा’ बनाई जिसका उद्देश्य ”ईश्वर एक है” का प्रचार था जिसके लिए ‘ब्रह्मसभा’ की स्थापना की जिसे बाद मेें ‘ब्रह्मसमाज’ कर दिया
- राजा राममोहन राय ने वर्ष 1830 में इंग्लैंड में भारतीय शिक्षा को फैलाने का काम किया तथा स्वामी विवेकानन्द के अलावा अन्य विभूतियों के नेतृत्व में पश्चिम में भारत का प्रचार किया
- राजा राममोहन राय ब्रिटिश संसद के द्वारा भारतीय मामलों में परामर्श के लिए जाने वाले प्रथम भारतीय थे
- राजा राममोहन राय का 27 सितम्बर वर्ष 1833 को इंग्लैंड के ब्रिस्टल में निधन हो गया उन्हें मुग़ल सम्राट की ओर से 'राजा' की उपाधि दी गयी।
- राजा राममोहन राय ने समाचार पत्रों की स्वतंत्रता के लिए भी कड़ा संघर्ष किया उन्होंने स्वयं एक बंगाली पत्रिका 'सम्वाद-कौमुदी' आरम्भ किया उसका सम्पादन भी किया
- राजा राममोहन राय ने सतीप्रथा का निवारण, भारतीय समाज की कट्टरता, रूढ़िवादिता एवं अंध विश्वासों को दूर करके उसे आधुनिक बनाने का प्रयास किया
- राजा राममोहन राय ने वेदान्त को अंग्रेज़ी में लिखकर उन्होंने यूरोप तथा अमेरिका में भी बहुत प्रसिद्धि अर्जित कराई
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